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mirch ki kheti

जून में उगाई जाने वाली फसलों की खेती से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी

जून में उगाई जाने वाली फसलों की खेती से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी

खेती किसानी में बहुत से आतंरिक और बाहरी कारक फसलीय उत्पादन को प्रभावित करते हैं। इनमें से एक प्रमुख कारक फसल बुवाई के समय का चयन करना है। 

किसान भाइयों को बेहतर उपज हांसिल करने के लिए हर एक माह के मुताबिक फसलों की बुवाई और कृषि कार्य करना चाहिए। साथ ही, फसल की बुवाई के लिए उन्नत किस्मों का चुनाव करना चाहिए, 

ताकि बंपर उत्पादन हांसिल किया जा सके। ऐसे में कृषकों के पास प्रति महीने कृषि कार्यों की जानकारी होनी चाहिए, ताकि ज्यादा उपज के साथ उच्च गुणवत्ता प्राप्त हो सके।

भारत में मौसम के आधार पर भिन्न-भिन्न फसलों की खेती की जाती है। इसी प्रकार प्रत्येक महीने मौसम को मद्देनजर रखते हुए अलग-अलग कृषि कार्य भी किया जाता है, ताकि फसलों की सही ढ़ंग से देखभाल की जा सके। 

इससे फसल की अच्छी-खासी वृद्धि होती है। साथ ही, उपज की गुणवत्ता में भी सुधार होता है। ऐसे में आवश्यक है, कि कृषकों को मौसम के आधार पर किए जाने वाले कृषि कार्यों की सटीक जानकारी होनी चाहिए।

धान की नर्सरी से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी 

यदि किसान भाई मई के अंतिम सप्ताह में धान की नर्सरी नहीं लगा पाए हैं, तो जून के प्रथम सप्ताह तक यह कार्य पूर्ण कर लें। वहीं, सुगंधित किस्मों की नर्सरी जून के तीसरे सप्ताह तक लगा लें। 

धान की मध्यम और देरी से पकने वाली किस्मों को काफी अच्छा माना गया है। इसमें स्वर्ण, पंत-10, सरजू-52, नरेन्द्र-359, जबकि टा.-3, पूसा बासमती-1, हरियाणा बासमती सुगंधित एवं पंत संकर धान-1 तथा नरेन्द्र संकर धान-2 प्रमुख उन्नत संकर किस्में हैं। 

धान की बारीक किस्मों के लिए प्रति हेक्टेयर बीज दर 30 किलोग्राम, मध्यम धान के लिए 35 किलोग्राम, मोटे धान के लिए 40 किलोग्राम और बंजर भूमि के लिए 60 किलोग्राम, जबकि संकर किस्मों के लिए 20 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की जरूरत पड़ती है। 

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अगर नर्सरी में खैरा रोग नजर आए तो 20 ग्राम यूरिया, 5 ग्राम जिंक सल्फेट प्रति लीटर पानी में घोलकर 10 वर्ग मीटर क्षेत्र में छिड़काव करना चाहिए।

मक्का की जून में बुवाई से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी   

जून में मक्का की खेती से किसान अच्छा खासा मुनाफा कमा सकते हैं। इसलिए अगर आप मक्का की बुवाई करना चाहते हैं, तो इसकी बुवाई 25 जून तक कर लेनी चाहिए। अगर सिंचाई की सुविधा हो तो इसकी बुवाई 15 जून तक भी की जा सकती है। 

मक्का की उन्नत किस्मों में शक्तिमान-1, एच.क्यू.पी.एम.-1, तरुण, नवीन, कंचन, श्वेता और जौनपुरी की सफेद और मेरठ की पीली स्थानीय किस्में अच्छी मानी जाती हैं।

किसान पशु चारा की फसलों की बुवाई करें  

पशुओं के लिए हरे चारे का अभाव ना हो इसलिए आप इस महीने में ज्वार, लोबिया और चरी जैसे चारे वाली फसलों की बुवाई कर सकते हैं। बारिश न होने की स्थिति में खाद देकर बुवाई की जा सकती है। 

जून के महीने में किसान इन सब्जियों की खेती करें

जून के महीने में आप बैंगन, मिर्च, अगेती फूलगोभी की रोपाई कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त लौकी, खीरा, चिकनी तोरी, सावन तोरी, करेला और टिंडा की बुवाई भी इसी माह की जा सकती है। 

भिंडी की उन्नत किस्मों में परभणी क्रांति, आजाद भिंडी, अर्का अनामिका, वर्षा, उपहार, वी.आर.ओ.-5, वी.आर.ओ.-6 और आईआईवीआर-10 अच्छी मानी जाती है।

तीखी मिर्च देगी मुनाफा

तीखी मिर्च देगी मुनाफा

मिर्च मसाले, अचार और आम सब्जियों में प्रयोग में लाई जाती है। इसकी जरूरत भले ही कम मात्रा में रहती हो लकिन इसका उपयोग तकरीबन हर व्यक्ति हर दिन करता है। मिर्च की खेती जितनी लाभकारी हो सकती है उतनी दूसरी कोई फसल नहीं हो सकती। बात सिर्फ इतनी है किसानों को इसकी खेती बाजार में केताजी मिरच की कीमत मिले तो उस समय और ​यदि न मिले तो इसके अचार व मसालों के लिए तैयार करने के हिसाब से उगाना चाहिए। बाजार में किसान को उसकी फसल की उचित कीमत कभी कभार ही मिलती है। मिर्च की फसल ऐसी है इसे हर स्थिति में सुरक्षित किया जा सकता है और उसकी कीमल वसूली जा सकती है। 

मिर्च की फसल खरीफ एवं जायद दोनों सीजनों में होती है। इसकी खेेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती है।

मिर्च की उन्नत किस्में

 

 यूंतो मिर्च की अनेक किस्में बाजार में मौजूद हैं लेकिन सरकारी संस्थानों की किस्में भी किसी से कम नहीं हैं। इनमें एनपी 46ए किस्म की मिर्च की लम्बाई 9 सेण्टीमीटर तक हो जाती है। यह 60 कुंतल प्रति हैक्टेयर उपज देती है।  इसके अलावा पन्त सी 1 किस्म 90 कुंतल तक उपज देती है। लम्बाई 6 सेण्टीमीटर तक होती है। इसके अकावा पूसा ज्वाला किस्म 11 सेण्टीमीटर तक लम्बी होती है और 70 कुंतल तक उपज देती है।  के 5452 किस्म सामान्य तीखापन लिए होती है और मसालों के लिए सुखाने पर भी 22 कुंतल तक उपज देती है। इनके अलावा भी प्राईबेट कंपनियों की अनेक किस्में हैं जिन्हें किसान अपने इलाकों में लगा रहे हैं। किस्मों का चयन रोग रोधी देखकर करना चाहिए ताकि बाद में फसल में रोग संक्रमण का प्रभाव कम हो। 

मिर्च की पौध की तैयारी

 

 पौध डालने का कार्य फरवरी से मार्च एवं मई से जुलाई तक किया जाता है।एक हैक्टेयर के लिए एक से डेढ किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। हाइब्रिड किस्मों का बीज महंगा होता है और कम उपयोग में आता है। पौध एक माह की होने पर रोपी जाती है। जुलाई से सितंबर में 60 सेमी की दूरी कतारों में व 40 सेमी दूरी पौधों की रखते हैं। मार्च अप्रैल में 45 सेमी कतारों एवं 30 सेमी पौधों से पौधों की दूरी रखते हैं।

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रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई करनी चाहिए ताकि पौधे की मिट्टी जम जाए और पौधे की जड़ें भी जम जाएं। 

मिर्च के रोग नियंत्रण

मिर्च में कई बार थ्रिप्स नामक कीट लगता है जो पत्तियों का रस चूस जाता है। इससे बचाव के लिए प्रथमत: मेलाथियान धूल का बुरकाव करें। इसके अलावा उकठा रोग के नियंत्रण हेतु प्रभावी फफूंदनाशक का छिडकाव करें। इनमें मेटासिक्सास, डाईथेनएम 45 आदि का उपयोग किया जाता है। पौधे से पौधे की दूरी 40 सेण्टीमीटर एवं कतारों की दूरी 60 सेण्टीमीटर रखते हैं। पौध सदैव बैड पर डालें। बीज का उपचार एवं मृदा उपचार अवश्य करें।

हरी मिर्च की खेती की पूरी जानकारी

हरी मिर्च की खेती की पूरी जानकारी

दोस्तों आज हम बात करेंगे हरी मिर्च की खेती से जुड़ी सभी प्रकार की आवश्यक जानकारियों के बारे में, हरी मिर्च का नाम सुनते ही जबान में अलग सा तीखापन आ जाता है। हरी मिर्च का इस्तेमाल खाने में स्वाद बढ़ने के साथ खाने को जायकेदार भी बना देता है। हरी मिर्च की खेती की पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारी इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहें:


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हरी मिर्च की खेती:

हरी मिर्च जिसको हम कैप्सिकम एनम के नाम से भी पुकारते हैं, खाने, सब्जी ,चार्ट, मसाले , अचार आदि तरह-तरह की डिशेस बनाने के लिए हरी मिर्च का इस्तेमाल करना अनिवार्य है। आप कितना ही स्वादिष्ट खाना क्यूं न बना लें, परंतु यदि आपने हरी मिर्च का इस्तेमाल नहीं किया होगा तो खाने में कुछ कमी रह जाएगी, जो पूरी नहीं की जा सकती है। ऐसे में हरी मिर्च, मसालों में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। हरी मिर्च एक गर्म मसाला कहा जाता है। मिर्च का इस्तेमाल सूखे पाउडर के रूप में, ताज़ी मिर्च तथा विभिन्न विभिन्न तरह से काम में आती है। स्वाद के साथ मिर्च में पौष्टिकता भी पाई जाती है। जैसे मिर्च में विटामिन और सी का प्रमुख स्त्रोत भी होता है। कुछ औषधियों में मिर्च का इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए मिर्च की खेती करने से किसानों को बहुत लाभ पहुंचता है।

हरी मिर्च की खेती करने के लिए उपयुक्त जलवायु का होना:

किसानों के लिए हरी मिर्च की फसल आय के साधन के साथ ही साथ कम लागत वाली भी फसल है। इसलिए हरी मिर्च की खेती करने के लिए किसानों को विभिन्न प्रकार की उपयुक्त जलवायु की आवश्यकता पड़ती है। हरी मिर्च की खेती के लिए सबसे अच्छा तापमान 20 से 35 डिग्री सेल्सियस का तापमान उचित माना जाता है। गर्म आर्द जलवायु फसल के लिए सबसे अच्छी होती है क्योंकि कभी-कभी ऐसा होता है, पाले के द्वारा फसल पूरी तरह से बर्बाद हो जाती है।


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हरी मिर्च की फसल से ज्यादा उत्पत्ति प्राप्त करने के लिए उष्णीय व उप उष्णीय जलवायु की जरूरत होती है। तापमान उचित ना मिलने के कारण मिर्च की कलियाँ, फल, पुष्प आदि को नुकसान पहुंचता है और यह गिरना शुरू हो जाती हैं। ऐसे में हरी मिर्च की खेती करने के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु उपयुक्त होती है। किसानों के अनुसार, आप हरी मिर्च की खेती हर प्रकार की जलवायु में कर सकते हैं। पर उचित रहेगा यदि आप गर्म और आर्द्र जलवायु का चुनाव करते हैं। हरी मिर्ची की फसल पर पाले का बहुत ज्यादा प्रकोप बना रहता है। ऐसे में हरी मिर्च के पौधों को 100 से 120 सेंटीमीटर वर्षा वाले क्षेत्रों में लगाना उचित होगा। ठंडा और गर्म दोनों प्रकार का मौसम हरी मिर्च की फसल के लिए हानिकारक होता है।

हरी मिर्च की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी का चयन :

हरी मिर्च की खेती करने के लिए सबसे उपयोगी मिट्टी बलुई दोमट मिट्टी होती है। किसानों के अनुसार, बलुई दोमट मिट्टी में फसल की बुवाई करने से हरी मिर्ची की पैदावार उच्च कोटि पर होती है। खेतों मे जल निकास की व्यवस्था को जरूर बनाए रखें।

हरी मिर्च की खेती के लिए खेतों को तैयार करें:

मिर्च की खेती करने के लिए किसान भूमि की भली प्रकार से जुताई करते हैं। एक गहरी जुताई की प्राप्ति करने के बाद खेतों को तैयार किया जाता है। जुताई के बाद तकरीबन 10 से 12 टन सड़ी हुई गोबर की खाद को खेतों में डालें। यदि गोबर की खाद सही प्रकार से सड़ी हुई नहीं होगी, तो खेतों में दीमक लग सकते हैं। मिट्टियों को अच्छी तरह से भुरभुरा कर लेना चाहिए। खेतों में क्यारियों को अच्छी तरह से थोड़ी थोड़ी दूरी पर लगाएं।


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हरी मिर्ची की फसल की सिंचाई:

हरी मिर्च की फसल की सिंचाई किसान सर्वप्रथम बीज रोपण करने के बाद देते हैं। मौसम के अनुसार सिंचाई की जाती है। यदि गर्मी का मौसम है तो लगभग 6 से 7 दिनों के अंदर सिंचाई दी जाती है। यदि मौसम ठंडा है यानी सर्दी का है, तो यह सिंचाई लगभग 15 से 20 दिनों के अंदर दी जाती है। जब खेतों में हरी मिर्च के फल व फूल आने लगे तब एक हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। अगर ऐसी स्थिति में आप सिंचाई नहीं करेंगे, तो उत्पादकता और फसलों की बढ़ोतरी में कमी आ जाएगी। साथ ही साथ आपको इस बात का भी ख्याल रखना होगा कि किसी भी प्रकार से खेतों में पानी का जमाव ना रहे।


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हरी मिर्च की फसल की निराई गुड़ाई करने का तरीका:

हरी मिर्ची की फसल के लिए निराई गुड़ाई करना बहुत ही ज्यादा उपयोगी होता है क्योंकि, निराई गुड़ाई करने से किसी भी प्रकार के कीट, रोग आदि फसलों में नहीं लगने पाते हैं व फसलों का बचाव होता है। निराई गुड़ाई दो से तीन बार हाथों द्वारा, तीन से चार बार गुड़ाई की जरूरत होती है। मिट्टियों को एक से दो बार चढ़ाना उपयोगी होता है।


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दोस्तों हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारा यह आर्टिकल हरी मिर्च की खेती की पूरी जानकारी पसंद आया होगा। हमारे इस आर्टिकल में हरी मिर्ची की खेती से जुड़ी सभी प्रकार की जानकारियां मौजूद हैं, जिससे आप लाभ उठा सकते हैं। यदि आपको हमारा यहां आर्टिकल पसंद आया हो, तो हमारे इस आर्टिकल को आप ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्तों के साथ और सोशल मीडिया तथा अन्य प्लेटफार्म पर शेयर करें। धन्यवाद।
इस मिर्च का प्रयोग खाने से ज्यादा सुरक्षा उत्पादों में किया जाता है।

इस मिर्च का प्रयोग खाने से ज्यादा सुरक्षा उत्पादों में किया जाता है।

मिर्च को राजा चिली के नाम से भी जाना जाता है। नागालैंड में उत्पादित हो रही यह मिर्च ६०० रुपये प्रति किलो तक के मूल्य पर विक्रय होती है। इसका उपयोग खाने में होने के साथ-साथ कंपनियां इसका प्रयोग कर सुरक्षा उत्पाद भी निर्मित कर रही हैं। भारत में किसी भी फसल को उगाया जा सकता है, क्योंकि यहाँ हर प्रकार की मृदा उपलब्ध है। साथ ही, भारत में विभिन्न प्रकार की जलवायु भी होती हैं एवं प्रत्येक मृदा-जलवायु के माध्यम से भिन्न-भिन्न फसल का उत्पादन मिलता है। हालाँकि, भारत विभिन्न फसलों का एकमात्र सर्वाधिक उत्पादक देश है, परंतु वर्तमान में देखें तो विश्व की सर्वाधिक तीखी मिर्च भूत झोलकिया की जिसे नागा मिर्चा, गोस्ट पेपर, किंग मिर्चा, राजा मिर्चा के नाम से भी जाना जाता है। सर्वाधिक तीखेपन हेतु भूत झोलकिया का नाम गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी अंकित किया गया है। देश के उत्तर पूर्वी राज्य नागालैंड में उत्पादित होने वाली इस भूत झोलकिया का विभिन्न देशों में निर्यात हो रहा है। बतादें कि, भारत भूत झोलकिया का सर्वाधिक उत्पादक देश है, परंतु यह मिर्च इतनी तीखी होती है, कि इसको खाने से ज्यादा उपयोग सुरक्षा उत्पाद बनाने के लिए किया जाता है। नॉर्थ-ईस्ट प्रदेशों में इस मिर्च से भोजन तो निर्मित होते ही हैं, परंतु बेहद कम लोगों को पता होगा कि, भूत झोलकिया मिर्च से सुरक्षा में प्रयोग होने वाली चिली पेपर स्प्रे एवं हैंड ग्रेनेड निर्मित किये जाते हैं। आज कई देशों में पाउडर एवं कच्चे रूप में भूत झोलकिया विक्रय हो रहा है। [embed]https://www.youtube.com/watch?v=66YIwYYDIys&t=32s[/embed]

भूत झोलकिया को क्यों सुरक्षा बलों का कवच माना जाता है

खबरों के मुताबिक बताया गया है, कि भूत झोलकिया मिर्च के तीखेपन की वजह से कुछ लोगों का स्वास्थ्य खराब हो जाता है। इसी कारण से नॉर्थ-ईस्ट के अतिरिक्त अन्य स्थानों पर इसका उपयोग खाने हेतु नहीं होता परंतु अपनी इसी विशेषता के कारण से इस मिर्च को वर्तमान में भारतीय सुरक्षा बलों का सुरक्षा कवच माना जाता है। उपद्रवियों के विरुद्ध देश सुरक्षा बल फिलहाल इस मिर्च का प्रयोग कर रहे हैं। सीमा सुरक्षा बल यानी बीएसएफ की ग्वालियर, टेकनपुर स्थित टियर स्मोक यूनिट में भूत झोलकिया मिर्च का प्रयोग कर आंसू गैस के गोले निर्मित किये जा रहे हैं। हालाँकि इन गोलों के प्रयोग से कोई शारीरिक हानि नहीं होती, परंतु आंतकवादी व उपद्रवियों की आँखों को धुएं से बंद करने और दम घोटने की दिक्क्त देने में बेहद सहायक होते हैं।


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वर्तमान में भारत की सर्वोच्च रक्षा संस्थान डीआरडीओ यानी रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन द्वारा भूत झोलकिया के अत्यधिक तीखेपन को देखते हुए इसको सुरक्षा उपकरणों में शम्मिलित किया गया है। महिलाओं की आत्मरक्षा हेतु भी भूत झोलकिया से चिली स्प्रे की तरह विभिन्न उत्पाद निर्मित किये जा रहे हैं, हालांकि इस मिर्च स्प्रे के कारण कोई घातक हानि नहीं होती है। परंतु कुछ वक्त तक उपद्रवियों को रोकने एवं गुमराह करने हेतु यह बेहद सहायक साबित होता है। केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, मिर्ची के तीखेपन में प्रथम स्थान पर प्योर कैप्साइसिन द्वितीय पर स्टैंडर्ड पेपर स्प्रे, तृतीय पर कैरोलिना रीपर एवं चतुर्थ पर ट्रिनिडाड मोरुगा स्कोर्पियन का नाम शामिल है। टॉप 5 तीखी मिर्चों में भूत झोलकिया का नाम भी शम्मिलित है।
पंजाब में किसान अपनी शिमला मिर्च की उपज को सड़कों पर फेंकने को हुए मजबूर

पंजाब में किसान अपनी शिमला मिर्च की उपज को सड़कों पर फेंकने को हुए मजबूर

आजकल देश के अलग अलग हिस्सों से कहीं बैंगन तो कहीं प्याज के दाम अत्यधिक गिरने की खबरें आ रही हैं। किसान लागत भी नहीं निकल पाने वाली कीमतों से निराश और परेशान होकर अपनी उपज को सड़कों पर ही फेंकना उचित समझ रहे हैं। इसी कड़ी में पंजाब के किसानों को शिमला मिर्च में खासा नुकसान वहन करने की खबरें सामने आ रही हैं। दरअसल। यहां व्यापारी एक रुपये किलो शिमला मिर्च खरीद रहे हैं। किसानों का इससे लागत तो दूर ले जाने का भाड़ा भी नहीं निकल पा रहा है। इसी वजह से दुखी होकर किसान अपनी शिमला मिर्च को सड़क पर फेंकने को मजबूर हो गए हैं। बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि के चलते किसानों को काफी हानि हुई है। इससे किसानों की लाखों रुपये की फसल बिल्कुल चौपट हो चुकी है। हालांकि, किसान भाइयों की परेशानियां यहीं खत्म नहीं हो रही हैं। किसान भाइयों को बागवानी यानी फल, सब्जी की बुवाई में भी काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। अत्यधिक उत्पादन होने की वजह से मंडियों में समुचित भाव किसानों को नहीं मिल पा रहे हैं। इसलिए किसानों को काफी ज्यादा परेशानी हो रही है। किराया तक भी न निकल पाने की वजह से नाराज किसान सब्जियों को सड़कों पर ही फेंकने को मजबूर हो रहा है।

शिमला मिर्च की कीमत पंजाब में 1 रुपए किलो

पंजाब में शिमला मिर्च की स्थिति काफी बेकार हो चुकी है। किसान भाई शिमला मिर्च लेकर मंड़ी पहुंच रहे हैं। लेकिन व्यापारी किसान से 1 रुपये प्रति किलो ही शिमला मिर्च खरीद रहा है। मनसा जनपद में बेहद ही ज्यादा शिमला मिर्च का उत्पादन हुआ है। यहां के किसान भी शिमला मिर्च को अच्छी कीमतों पर मंड़ी में नहीं बेच पा रहे हैं। ये भी पढ़े: वैज्ञानिकों द्वारा विकिसत की गई शिमला मिर्च की नई किस्म से किसानों को होगा दोगुना मुनाफा

शिमला मिर्च को सड़क पर फेंकने को मजबूर हुए किसान

मुख्यमंत्री भगवंत मान द्वारा किसान भाइयों से शिमला मिर्च की ज्यादा बुवाई करने की अपील की थी। नतीजा यह है, कि मनसा जनपद के कृषकों ने बेहतरीन उत्पादन भी हांसिल कर लिया है। पंजाब की मंड़ियों में शिमला मिर्च की काफी अधिक आवक हो रही है। समस्त शिमला उत्पादक किसान अपनी उपज को लेकर के मंड़ी पहुंच रहे हैं। परंतु, मंड़ियों में उनकी शिमला मिर्च की कीमत 1 रुपये किलो के अनुरूप लगाई जा रही है। इससे किसान हताश होकर अपनी ट्रैक्टर- ट्रॉली पर लदी शिमला मिर्च की उपज को सड़कों पर फेंकना उचित समझ रहे हैं।

व्यापारी किसानों पर बना रहे दबाव

कहा गया है, कि शिमला मिर्च की ज्यादा आवक देख व्यापारियों द्वारा किसानों पर शिमला मिर्च को 1 रुपये प्रति किलो की दर से बेचने पर दबाव बनाया जा रहा है। इससे किसान काफी आक्रोश में दिखाई दे रहे हैं। पंजाब राज्य में 3 लाख हेक्टेयर में हरी सब्जियां उगाई जाती हैं। 1500 हेक्टेयर में शिमला मिर्च की पैदावार की जाती है। मानसा, फिरोजपुर और संगरूर जनपद में सर्वाधिक शिमला मिर्च का उत्पादन किया जाता है।
जानें मिर्च की खेती में कितनी लागत में किसान कितना मुनाफा कमा सकते हैं

जानें मिर्च की खेती में कितनी लागत में किसान कितना मुनाफा कमा सकते हैं

भारत संपूर्ण वैश्विक खपत का अकेले 36 प्रतिशत मिर्ची का उत्पादन करता है। यह मसालों समेत मिर्च का भी निर्यात करता है। भारतीय लोग तीखा खाना अधिक पसंद करते हैं। सब्जी से लेकर दाल तक में तीखापन लाने के लिए मिर्च-मसालों का तड़का लगाया जाता है। यहां तक कि बाजार में मिलने वाले चिप्स और कुरकुरे भी तीखे ही होते हैं। विशेष बात यह है, कि हरी और लाल मिर्च का अचार भी निर्मित किया जाता है, जिसे लोग बड़े ही स्वाद से खाते हैं। ऐसी स्थिति में हम यह कह सकते हैं, कि बाकी फसलों की भांति किसान यदि मिर्च की खेती करते हैं, तब वह बेहतरीन आमदनी कर सकते हैं।

अकेला भारत वैश्विक खपत का 36 फीसद मिर्च उत्पादन करता है

बतादें कि मुख्य बात यह है, कि भारत पूरी दुनिया की खपत का अकेले 36 प्रतिशत मिर्ची का उत्पादन करता है। यह मसालों समेत मिर्च का भी निर्यात करता है। भारत में तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, गुजरात, राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश समेत कई राज्यों में
मिर्च की खेती की जाती है। एकमात्र आंध्र प्रदेश की मिर्च के कुल उत्पादन में 57 प्रतिशत भागीदारी है। साथ ही, विभिन्न राज्यों में सरकारें मिर्च की खेती हेतु अनुदान भी प्रदान करती हैं। हालाँकि, बाजार में हरी मिर्च का भाव सदैव 60 रुपये से लेकर 80 रुपये प्रतिकिलो तक रहता है।

एक हेक्टेयर जमीन पर मिर्च की खेती करने पर कितने किलो बीज की जरूरत पड़ेगी

भारत में हरी एवं लाल मिर्च दोनों की पैदावार की जाती है। इन दोनों मिर्चों की खेती किसी भी प्रकार की मृदा में की जा सकती है। यदि किसान भाई एक हेक्टेयर जमीन में मिर्च का उत्पादन करने की योजना बना रहे हैं, तो उसके लिए उनको सर्वप्रथम नर्सरी तैयार करनी पड़ेगी। नर्सरी तैयार करने के लिए लगभग 8 से 10 किलो मिर्च की जरुरत पड़ेगी। 10 किलो मिर्च के बीज खरीदने के लिए आपका 20 से 25 हजार रुपये का खर्च हो जाएगा। अगर आप हाइब्रिड बीज खरीद रहे हैं, तो आपको इसके लिए 40 हजार रुपये का खर्चा करना पड़ेगा। उसके बाद आप नर्सरी के अंदर बीज की बुवाई भी कर सकते हैं। एक माह के उपरांत नर्सरी में मिर्च के पौधे पूरी तरह तैयार हो जाएंगे। इसके उपरांत आप पहले से तैयार खेत में मिर्च की बुवाई कर सकते हैं।

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एक हेक्टेयर में मिर्च उत्पादन के दौरान कितना खर्चा आता है

हालांकि, मिर्च की रोपाई करने से पूर्व सबसे पहले खेत को बेहतर ढ़ंग से तैयार करना पड़ेगा। खेत में उर्वरक के तौर पर गोबर को इस्तेमाल करना अधिक अच्छा रहेगा। एक हेक्टेयर जमीन में मिर्च का उत्पादन करने पर 3 लाख रुपये का खर्चा आएगा। परंतु, कुछ माह के उपरांत आप इससे 300 क्विंटल तक मिर्च की पैदावार उठा सकते हैं। अगर आप 50 रुपये के हिसाब से भी 300 क्विंटल मिर्च की बिक्री करते हैं, तो आपको करीब 15 लाख की आमदनी होगी।